Saturday, March 12, 2011

कहने को आज़ाद हुए पर ये कैसी आज़ादी है

कहने को आज़ाद हुए पर ये कैसी आज़ादी है
बेच-बेच कर देश खा रहा पहने वो जो खादी है

नेताओं के क़िले बन गए, कुर्सी के सिलसिले बन गए
साड़ी चप्पल जूते गहने, सम्पत्ति कितनी क्या कहने

घोटालों में देश रम गया, नेताओं का ख़ून जम गया
आस्तीन में विषधर पलते, जूते-कुर्सी-माइक चलते

भूख-प्यास में जनता तो आँसू पीने की आदी है
बेच-बेच कर देश खा रहा पहने वो जो खादी है


रिश्तों की भाषाएँ बदलीं, प्यार की परिभाषाएँ बदलीं
बातचीत के सुर बदले से, अपनों के भी उर बदले से

प्रेम-त्याग बस शब्दकोष में, छैयां छैयां जोश-जोश में
चलचित्रों के चित्र विषैले, गीत सुने नहले पर दहले

मिक्सिंग फिक्सिंग मैच हो रहे, गांधी बस स्कैच हो रहे
संस्कार सब लुप्त हो रहे, सत्ताधारी सुप्त हो रहे
वही अहिंसा-पाठ पढ़ाता, जिसने हिंसा लादी है
बेच-बेच कर देश खा रहा पहने वो जो खादी है

पहले एक बड़ा सा घर था, बच्चों को बूढ़ों का डर था
दादी-नानी कहें कहानी, बच्चों को थी याद ज़ुबानी

अब घर के सब कमरे सूने, सुविधाओं के साधन दूने
बूढ़ों का साया मिलता था, घर का हर पौधा खिलता था

पिता ने दस बेटे थे पाले, भूखे रहकर दिए निवाले
जीवन की संध्या जब आई, रिश्तों में पाई बस खाई

खालीपन भीतर तक काटे, कहने को आबादी है
बेच-बेच कर देश खा रहा पहने वो जो खादी है

लायर लायर ही देखते हैं, चन्द रुपय्यों में बिकते हैं
थाने में बोतल ले जाओ, जैसी चाहो रपट लिखाओ

जो चाहो डिसीज़ लिखवा लो, किसी चिकित्सक को दिखवा लो
मेडिकल ने विकल कर दिया, चोट लगे बिन घाव भर दिया

कितनों ने इतिहास बनाए, युद्धभूमि में रास रचाए
चलने को तैयार फौज है, मरना जिनके लिए मौज है

सीमाओं पर लहू बहाकर, दी हमको आज़ादी है
शत-शत उनको नमन जिन्होंने देश पे जान लुटा दी है

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