Wednesday, March 9, 2011

किसको विजय मिलेगी देखें, युद्ध बड़ा ही भारी है ॥

लोकतन्त्र का चेहरा कलुषित, नेता भ्रष्टाचारी है,
हम इन धृतराष्ट्रों को ढोएँ, ऐसी क्या लाचारी है ?
सिंहासन कब तक झेलेगा, लंगड़े-लूले शासक को
आओ मिलकर सबक़ सिखा दें,हर शोषक, हर त्रासक को
रामराज्य के झूठे नारे,आसमान में गूँज रहे,
हंसों को बनवास दिलाकर,हम कागों को पूज रहे
गाँधी, नेहरू के चित्रों से,शोभित इनके बँगले हैं,
लेकिन उनके आदर्शों पर,निश-दिन इनके हमले हैं
आज विश्व में भारत-भू पर,संकट बेहद भारी है,
नई सदी में पग धरने की यह,कैसी तैयारी है ?
तुमने तो अपने शासन में,बाँर्डर सारे खोल दिए
स्वदेशी और विदेशी,एक तुला पर तोल दिए
पश्चिम के आर्कषण में तुम,अपनी संस्कृति भूल गए,
अपनी हालत भूल, विदेशी,रंगरलियों में झूल गए
नेताओ! भारत ने तुमसे,बाँधी थीं कुछ आशाएँ,
भूल गए तुम गाँधी-चिन्तन, और उसकी परिभाषाएँ
शिक्षा अपने बच्चों को तुम,दिलवाते हो फाँरन में,
अब तुम अपने कपड़े तक भी,सिलवाते हो फाँरन में
फाँरन के तलुए सहलाने,की तुमको बीमारी है,
रिश्तेदारी तक फाँरन से,होती आज तुम्हारी है ॥
रोग कौन सा है जिसका अब,भारत में उपचार नही,
मेडीकल-दुनिया में भारत,सक्षम है लाचार नही
अस्पताल में दवा नही है,इंजेक्शन का नाम नही,
रामभरोसे हैं सब रोगी,कुछ इलाज का काम नही
इस कारण ही धन्वन्तरी-सुत,अपनी धरती छोड रहे,
और डाक्टर फाँरन जाकर,अपना नाता जोड़ रहे
अपनी जन्म-भूमि पर ही अब,योग्य चिकित्सक भारी है,
प्रतिभाओं की कद्र नही है,शासन की बलिहारी है ॥
यह कैसा सूरज निकला जो,चारों ओर अँधेरा है,
कहीं-कहीं पर थोड़ा-थोड़ा,उज्ज्वलता का घेरा है
गाड़ी, बँगला, ऊँची कोठी,आसमान को मात करे,
और कहीं रोटी की ख़ातिर,बचपन ख़ुद से घात करे
रोटी, कपड़ा, सर पर छप्पर,अगर सभी के पास नही,
तो शासन के आश्वासन पर,हमें ज़रा विश्वास नही
सिर्फ़ योजनाएँ बनती हैं,होता कुछ उत्थान नहीं,
मन्त्री, नेता, अफ़सर में अब,शेष रहा ईमान नहीं
राष्ट्र-प्रेम और राष्ट्र-दोह की, जंग देश में जारी है,
किसको विजय मिलेगी देखें, युद्ध बड़ा ही भारी है ॥