सिहासन खाली करो की जनता आती है.............
सदियो की ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज् पहन इठलाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ...........
जनता? हां, मिट्टी की अबोध् मूर्ती वही,
जाड़े पाले की कसक सदा सहने वाली,
जब अंग-अंग मे लगे सांप हो चूस रहे,
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते है,
जनता जब कोपकुल हो भृकुटी चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
हुन्कारो से महलो की नीव उखड जाती,
सांसो के बल से ताज हवा मे उडता है,
जनता की रोके राह समय मे ताब कहां?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुडता है।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
120 कोटि हित सिहासन तैयार करो,
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
120 कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
आरती लिये तु किसे ढूंढता है मूरख,
मन्दिरो, राजप्रासदो मे, तहखानो मे,
देवता कही सड़कों पर मिट्टी तोड रहे,
देवता मिलेंगे खेतो मे खलिहानो मे।
फ़ावडे और हल राजदण्ड बनने को है,
धुसरता सोने से श्रृंगार सजाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिहासन खाली करो कि जनता आती है।