Friday, April 15, 2011

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए(Poem)

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी शर्त थी

लेकिन कि ये बुनियाद भी हिलनी चाहिए ...


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर,

हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

कहीं भी आग,

लेकिन आग जलनी चाहिए