Monday, February 28, 2011

"अरे यार टाइम नहीं मिल रहा है ......... "

"अरे यार टाइम नहीं मिल रहा है ......... "

टीवी आने से पहले सभी लोग साथ में बैठकर बातें करते थे दिन-भर की हर बात को एक दुसरे को सुनाते थे भोजन साथ में करते थे इससे परिवार में या मित्रों के बीच एकात्मता बदती थी जिंदगी का भावनात्मक पहलु बहुत मजबूत था पर जब से टीवी आया तब से हर कोई बस उसी को जीवन समझे बैठा है और उसी में लगा हुआ है टीवी के कारण अपने प्रियजनों को अनदेखा कर देते हैं, सारा टाइम अपने टीवी के स्टार्स को देते है, क्रिकेट मैच और सिनेमा को देते हैं और अपने ही मित्रों और प्रियजनों के लिए समय नहीं होता या उनको देने वाला समय भी हम किसी न किसी टीवी कार्यक्रम को दे देते हैं फिर हम वक्त का रोना सभी के सामने रोते है कि"अरे यार टाइम नहीं मिल रहा है" हम टीवी के स्वार्थ में प्यार की अवहेलना कर देते हैं यह गलत है सरासर गलत है इससे अपनत्व कम हो जाता है फिर लोग चिल्लात्ते हैं कि मैं जिंदगी में अकेला क्यों हो गया ? मेरे बच्चे ऐसे क्यों हो गए ? ऐसा इसलिए हुआ मेरे भाई कि मनोरंजन की वस्तु थी टी वी, उसका काम था आपका अकेलापन दूर करना पर आपने तो उसको अकेलापन बढाने के लिए इस्तेमाल कर लिया है


कौन घड़ी में भैया हम घर में टीवी लाये,
केबल वाले ने भी आकर झटपट तार लगाये,
झटपट तार लगाये , टी वी हो गया चालू,
दोसो रुपये में बिकने लगा दस रूपये का आलू,


दोसौ रूपये का आलू! हमने कान लगाये,
अंकल चिप्स दो लाकर बच्चे चिल्लाये,
कौन घड़ी में भैया हम घर में टी वी लाये।


देखते ही देखते सज गई सितारों की दूकान,
तेल बेचे बिग बी गंजे हुए किंग खान,
गंजे हुए किंग खान बोले डिश टी वी लगवायें,
टा-टा स्काई को अच्छा आमिर बतलायें,
ऎसा हुआ धमाल कि हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।


बीवी बोली आज हमे नवरतन तेल लगाना है,
बिग बी जैसे ठंडा-ठंडा कूल-कूल हो जाना है,
ठंडा-ठंडा कूल कूल जो सर्दी का अहसास कराये,
दफ़्तर से श्रीमान जी आप तेल बिना न आयें,
तेल बिना क्या पूछ हमारी कोई हमको बतलाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।


तेल लगा बालो में जब श्रीमती मुस्कुराई,
ऎश्वर्या ने कोका कोला की सी सीटी बजाई,
हम दौड़े घर के भीतर न हो जाये कोई फ़रमाइश,
बेटा बोला कोला रहने दो पापा लादो स्लाइस,
मां ने भी चाहा की बालो पर हेयर डाई लगवाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।


चुन्नू बोला डेरी मिल्क हमको लगती प्यारी,
सनफ़िस्ट की रट लगाने लगी दुलारी,
टॉमी को भी अब हम पेडीग्री खिलायेंगे
वरना देखो प्यारे पापा हम भूखे ही सो जायेंगे,
बाल हठ के आगे हमको चक्कर आये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।


घर हमारा बन गया फ़रमाइशी दुकान,
विज्ञापनों की दौड़ में ऎसा हुआ नुकसान,
ऎसा हुआ नुकसान प्याज कटे बिन आँसू आये,
बदल दे घर का नक्शा आप एल सी डी लगवाये,
सुनकर ये फ़रमान हम न रोये न हँस पाये,
कौन घड़ी मे भैया हम घर में टी वी लाये।

केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो ............... काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो (कविता)

केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो ............... काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो
हरी ॐ पवार जी उन्होंने कविता पाठ किया था 1977 के जन आन्दोलन के समय और तब आपातकाल लागू हो गया था, और उन्होंने कहा इस बार पता नहीं क्या होगा, स्थिति कुछ कुछ वैसी ही है :-

मैं भी गीत सुना सकता हूँ , शबनम के अभिनन्दन के,
मैं भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत लिखूंगा जन गन मन के क्रंदन के ..........


जब पंछी के पंखो पर हो पहरे बम और गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हो सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पर हो दाग लहू की होली के
कोई कैसे गीत सुना दे बिंदिया कुमकुम रोली के .......


मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आंसू गाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ


अन्धकार में समां गए जो तूफानों के बीच जले
मंजिल उनको मिली कभी जो चार कदम भी नहीं चले
क्रांतिकथा में गौण पड़े है गुमनामी की बाहों में
गुंडे तस्कर तने खड़े है राजमहल की राहों में .........


यहाँ शहीदों की पावन गाथाओं को अपमान मिला
डाकू ने खादी पहनी तो संसद में सम्मान मिला
राजनीति में लोह पुरुष जैसा सरदार नहीं मिलता
लाल बहादुर जी जैसा कोई किरदार नहीं मिलता
ऐरे गैरे नत्थू खैरे तंत्री बनकर बैठे है
जिनको जेलों में होना था मंत्री बनकर बैठे है


लोकतंत्र का मंदिर भी बाज़ार बनाकर डाल दिया
कोई मछली बिकने का बाज़ार बना कर डाल दिया
अब जनता को संसद भी प्रपंच दिखाई देती है
नौटंकी करने वालों का मंच दिखाई देती है


पांचाली के चीर हरण पर जो चुप पाए जायेंगे
इतिहासों के पन्नो में वे सब कायर कहलाये जायेंगे
कहाँ बनेंगे मंदिर मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मंडल और कमंडल पी गए सबकी आँखों का पानी


प्यार सिखाने वाले बस ये मजहब के स्कूल गए
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गए
कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल जले
सांझ चिरैया सूली टंग गयी पंछी गाना भूल चले


आँख खुली तो पूरा भारत नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी दी वो घर भरने में व्यस्त मिला
क्या यही सपना देखा था भगत सिंह की फ़ासी ने?
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ


जो अच्छे सच्चे नेता है उन सबका अभिनन्दन है
उनको सौ सौ बार नमन है मन प्राणों से वंदन है
जो सच्चे मन से भारत माँ की सेवा कर सकते है
हम उनके कदमो में अपने प्राणों को भी धर सकते है


लेकिन जो कुर्सी के भूखे दौलत के दीवाने है
सात समुंदर पार तिजोरी में जिनके तहखाने है
जिनकी प्यास महासागर है भूख हिमालय पर्वत है
लालच पूरा नीलगगन है दो कौड़ी की इज्जत है


इनके कारण ही बनते है अपराधी भोले भाले
वीरप्पन पैदा करते है नेता और पुलिस वाले
केवल सौ दिन को सिंघासन मेरे हाथों में दे दो
काला धन वापस न आये तो मुझको फांसी दे दो


जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बागला भगतो की टोली हंसों को खा जाती है
जब जब भी जयचंदो का अभिनन्दन होने लगता है
तब तब सापों के बंधन में चन्दन रोने लगता है


जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तो माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते है
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते है


सिंघो को म्याऊँ कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता तो दिल्ली में है
कहते है कि सच बोलो तो प्रण गवाने पड़ते है
मैं भी सच्चाई को गाकर शीश कटाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ


कोई साधू सन्यासी पर तलवारे लटकाता है
काले धन की केवल चर्चा पर भी आँख चढ़ाता है
कोई हिमालय ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई यमुना गंगा अपने घर में भरने लगता है


कोई तिरंगे झंडे को फाड़े फूके आज़ादी है
कोई गाँधी को भी गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में


कोई ढाँचे का गिरना UNO में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है
कोई अपनी संस्कृति में आग लगाने लगता है
कोई बाबा रामदेव पर दाग लगाने लगता है


सौ गाली पूरी होते ही शिशुपाल कट जाते है
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

(लेखक : हरी ॐ पवार)

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना!!

अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना!!

श्रम करके संध्या को घर में, अपने बिस्तर पर आया था
उस दिन ना जाने क्यों मैंने, मन में भारीपन पाया था

जब आँख लगी तो सपने में लहराता तिरंगा देखा था
राष्ट्र ध्वजा की गोद लिए, भारत माँ का बेटा था

जयहिंद का नारा बोल बोल के आकर वह चिल्लाये थे
उस रात स्वंय बाबू सुभाष, मेरे सपने में आये थे

बोले भारत भूमि में जन्मा है, तू कलंक क्यों लजाता है
राग द्वेष की बातो पर, क्यों अपनी कलम चलाता है

इन बातो पर तू कविता लिख, मै विषय तुम्हे बतलाता हूँ
वर्तमान के भारत की मै,झांकी तुझे दिखाता हूँ

हमने पूनम के चंदा को राहू को निगलते देखा है
हमने शीतल सरिता के पानी को उबलते देखा है

गद्दारों की लाशों को चन्दन से जलते देखा है
भारत माता के लालों को शोलो पर चलते देखा है

देश भक्त की बाहों में सर्पों को पलते देखा है
हमने गिरगिट सा इंसानों को रंग बदलते देखा है

जो कई महीनो से नही जला हमने वो चूल्हा देखा है
हमने गरीब की बेटी को फाँसी पर झूला देखा है

हमने दहेज़ बिन ब्याही बहुओ को रोते देखा है
मजबूर पिता को गर्दन बल पटरी पर सोते देखा है

देश द्रोही गद्दारों के चहरे पर लाली देखी है
हमने रक्षा के सौदों में होती हुई दलाली देखी है

खादी के कपड़ो के भीतर हमने दिल काला देखा है
इन सब नमक हरामो का,शेयर घोटाला देखा है

हमने तंदूर में नारी को रोटी सा सिकते देखा है
लाल किले के पिछवाड़े, अबला को बिकते देखा है

राष्ट्रता की प्रतिमाओ पर,लगा मकड़ी का जाला देखा है
जनपद वाली बस्ती में हमने कांड हवाला देखा है

आतंकवाद के कदमों को इस हद तक बढ़ते देखा है
अमरनाथ में शिव भक्तों को हमने मरते देखा है

होटल ताज के द्वारे, उस घटना को घटते देखा है
माँ गंगा की महाआरती में, बम फटते देखा है

हमने अफजल की फाँसी में संसद को सोते देखा है
जो संसद पर बलिदान हुए, उनका घर रोते देखा है

उन सात पदों के सूरज को भारत में ढलते देखा है
नक्शलवाद की ज्वाला में, मैंने देश को जलते देखा है

आजादी के दिन दिल्ली,बन गई दुल्हनिया देखी है
15 अगस्त के दिन भोलू की भूखी मुनिया देखी है

हमने संसद के अन्दर राष्ट्र की भ्रस्टाचारी देखी है
हमने देश के साथ स्वयं, होती गद्दारी देखी है

ये सारी बाते सपने में नेता जी कहते जाते थे
उनकी आँखों से झर झर आंसू भी बहते जाते थे

बोले जा बेटे भारत माता के, अब तू सोते लाल जगा
अभी वतन आजाद नही, आजाद हिंद तू फ़ौज बना