ए खाक नशीनों उठ बैठो .............
दरबार ए वतन में जब एक दिन सब जाने वाले लायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुचेंगे कुछ अपनी जजा ले जायेंगे
ए खाक नशीनो उठ बैठो वो वक़्त करीब आ पंहुचा है
जब तख़्त गिराए जायेंगे जब ताज उछाले जायेंगे
अब टूट गिरेगी जंजीरे अब जन्दानों की खैर नहीं
जो दरिया झूम के उठे है तिनकों से ना टाले जायेंगे
कटते भी चलो बढ़ते भी चलो बाजु भी बहुत है सर भी बहुत
चलते भी चलो अब डेरे मंजिल पर ही डाले जायेंगे
ए जुल्म के मतों लैब खोलो चुप रहने वालों चुप कब तक
कुछ हर्श तो इनसे उठेगा कुछ दूर तो नाले जायेंगे
कुछ अपनी सजा को पहुचेंगे कुछ अपनी जजा ले जायेंगे
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